होली विशेष- काका देवर सा हुआ,भौजी खेले फाग
होली हुल्लड़ कीजिए, चैन भंग हो जाय।
देखन मानो लग रहा, दिल्ली जाए लजाय।।
कीचड़ - कालिख लीजिए, देख सभ्य पर डार।
चिंता तनिक न कीजिए, भले तने तलवार।।
छककर हलक उतारिए, गांजा - भांग - शराब।
फौरन भागे कोरोना, उल्टे पांव जनाब।।
काका देवर सा हुआ,
भौजी खेले फाग।
छम्मक छल्लो नाचती,
छेड़े बुढ़वा राग।।
गुझिया रानी हो गई,
पुआ है महाराज।
खोवा की ना पूछिए,
बदल गया अंदाज।।
पलान मडई जो मिले,
दो सूली लटकाय।
सम्मत बाबा लोहिया, होलरी ले नचाय।।
पानी अमृत सा हुआ,
गए भाड़ में ध्यान।
सौ - सौ लीटर रंग पे,
कर डालो कुर्बान।।
सा रा रा रा कह रहा,
नगर- मोहल्ला- गांव।
जुम्मन - अलगू मन हुआ, ज्यों पेड़ और छांव।।
गाली भी शर्मा गई,
सुन होली पे बोल,
डीजे मस्ती बज रही,
नाच लंगोटा खोल।
बुरा न मानो होली है,
कह कर पल्ला झाड़।
कुछ तो अपने बुद्धि का, 'नवचंद' झंडा गाड़।।
डॉ नवचंद्र तिवारी
साहित्यकार, (बलिया)